Press Freedom Day: दुनिया भर में हर साल 3 मई को प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाता है. यह दिन दुनियाभर के पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को समर्पित होता है. मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. ये दिन उन सभी पत्रकारों को समर्पित है जो सच को सामने लाने के लिए अपनी जान खतरे में डालते है.
पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसमें मिलने के लिए गाली-गलोच है, दवाब है, खतरा है, जो नहीं है वो है पैसा और इज्जत. दिखने के लिए तो दूर से चमकता हुआ सितारा नज़र आता है. पास आने पर ही चमकते सितारे की सच्चाई पता चलती है, जो महज़ एक आग का गोला है. जिसमें हर दिन कही न कही कोई पत्रकार जल रहा है. कोई चिलचिलाती धूप में जल रहा है, कोई किसी के गुस्से की गर्मी में तो कोई सच बाहर लाने की आग में झुलस रहा है. फिर भी हर दिन ये पत्रकार दुबारा जलने के लिए तैयार मिलता है. कुछ इस जलन की मलहम के साथ, तो कोई समझौते के साथ तो कोई जलने को ही फितरत बना लेने के साथ.
प्रेस फ्रीडम डे मनाया क्यों जाता है ?
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस, जो हर साल 3 मई को मनाया जाता है. प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व पर विचार करने और उन पत्रकारों को याद करने का अवसर प्रदान करता है, जिन्होंने सच को उजागर करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. यह दिन साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया था और तब से यह दुनिया भर में मीडिया स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया है.
प्रेस स्वतंत्रता का महत्व
वैसे कहने को तो प्रेस स्वतंत्रता लोगों को इनफॉर्म्ड डिसीजन लेने के लिए जरूरी जानकारी देने में अहम भूमिका निभाती है. यह सरकारों और कई शक्तिशाली संस्थाओं को जवाबदेह रखने में भी मदद करता है. पर आज भी दुनियाभर के देशों में शक्तिशाली संस्थाओं और सरकारों के दवाब में ख़बरों को दबाया जाता है, पत्रकारों को जान से मरने की कोशिश की जाती है तो कही मार ही दिया जाता है.
फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन एक फंडामेंटल ह्यूमन राइट्स है और प्रेस स्वतंत्रता इस अधिकार का अभिन्न अंग है. यह लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने का राइट देता है. एक स्वतंत्र और समृद्ध मीडिया समाज के सभी क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने में जरूरी भूमिका निभा सकता है. यह शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तक पहुंच को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है. पर इस महत्व का एक वक़्त था जब कलम का इस्तेमाल कर कहीं देश आज़ाद हुए तो कहीं देशों में बड़े बदलाव. ये महत्व अब बहुत ज्यादा नहीं रहे हैं.
मीडिया संस्थाएं पूरी तरह कॉर्पोरेट जगत में बदल गयी है. यहां पत्रकारिता करने आएं बहुत से लोगों का सपना, नाम और पैसे कमाने का होता है. वो पैसे जो मीडिया हाउसेस में गिने चुने नामी चेहरों और बहुत अनुभवी लोगों की जेबों में ही जातें है. जाएं भी क्यों न पत्रकार तो वही लोग है बाकि मीडिया हाउस में काम करने वाले लोग तो मजदूर दिवस मनाते है.
दूसरों के साथ होते शोषण पर आवाज उठाने वाले पत्रकार अपने लिए कभी कुछ कह ही नहीं पाते इन्हे बातों से सांत्वना दी जाती है जिससे ना भूख मिटती है ना कमरे का किराया भरा जाता है. गधा मजदूरी कराने वाले मीडिया हाउसेस एक नौकरी देने कि जगह कभी पेड तो ज्यादातर अनपेड इंटर्नशिप मजदूर को काम पर रखते है. फिर भी बहुत से पत्रकार है जो पुरे जोश, होश और सच (अपना-अपना सच) के साथ पत्रकारिता कर रहे हैं. उन सभी को 3 मई को प्रेस की स्वतंत्रता (जो कहीं तो कैद है) दिवस की शुभकामनाएं…
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