Explainer: संसदीय प्रणाली भारत के लिए क्यों जरूरी ?

Lok Sabha Election: भारत में हमेशा से ही शासन की संसदीय बनाम अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को लेकर बहस होती रहती है. आज जब लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का मतदान होना है तो इस विषय पर चर्चा करना प्रासंगिक हो जाता है. वास्तव में विश्व में दो तरह की शासन व्यवस्थाएं ही सबसे ज्यादा प्रचलित है. पहला संसदीय प्रणाली, दूसरा अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली. भारत में शासन की संसदीय प्रणाली का चयन किया गया है. साथ ही विभिन्न विद्वान समय- समय पर भारत में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाने का सुझाव देते रहे हैं.

संसदीय प्रणाली शासन की वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका अपनी लोकतान्त्रिक वैधता विधायिका से प्राप्त करती है. साथ ही कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है. आपको बता दें भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख है. वहीं प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है.

संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री देश की शासन व्यवस्था का सर्वोच्च प्रधान होता है. भारत में केंद्र व राज्य दोनों ही स्तर पर शासन की संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 के अंतर्गत केंद्र में तथा अनुच्छेद 163 और 164 के अंतर्गत राज्यों में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था को अपनाया गया है.

दूसरी ओर शासन व्यवस्था की अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में प्रायः राज्य का प्रमुख (राष्ट्राध्यक्ष) सरकार (कार्यपालिका) का भी अध्यक्ष होता है. इस शासन प्रणाली में कार्यपालिका अपनी वैधता के लिये विधायिका पर निर्भर नहीं रहती है. इस प्रणाली में राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका प्रमुख होता है. सीधे शब्दों में कहें तो इस प्रणाली में राज्य का मुखिया तथा सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होते हैं.

भारत में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाए जाने को लेकर कई तर्क दिए जाते हैं . सबसे पहले इस शासन प्रणाली में स्थायित्व तुलनात्मक रूप से ज्यादा होता है. इसमें राजनीतिक प्रभाव से मुक्त निर्णय लेने की संभावना ज्यादा होती है. इस शासन प्रणाली में नीतियों में निरंतरता ज्यादा होती है. साथ ही इसमें विशेषज्ञों द्वारा शासन द्वारा शासन को बढ़ावा मिलता है. इसके अलावा यहां शक्तियों का स्पष्ट विभाजन होता है, लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में एक-दूसरे का किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं होता है.

लेकिन इस सब एक बावजूद आज भी भारत के लिए संसदीय प्रणाली ही बेहतर बताई जाती है. सबसे पहले संसदीय प्रणाली में उत्तरदायित्व का का बोध होता है. दूसरी बात यह कि भारत संसदीय व्यवस्था से ब्रिटिश काल से ही परिचित था. यहां विधायिका एवं कार्यपालिका में सामंजस्य की व्यवस्था है.

प्रसिद्द संविधान विशेषज्ञ केएम मुंशी के अनुसार, भारत ने संसदीय व्यवस्था में उत्तरदायित्व व जवाबदेहिता के सिद्धांत का समावेश किया है, जिससे यह व्यवस्था भारतीय जनमानस के अनुकूल हो चुकी थी. वहीं भारतीय परिस्थितियों में जनता के प्रति उत्तरदायी व्यवस्था को ज्यादा वरीयता दी गई. सबसे बड़ी बात भारत एक विविधतापूर्ण समाज है. इसलिये संविधान निर्माताओं ने संसदीय व्यवस्था को अपनाया ताकि शासन में प्रत्येक वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके.

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