Parental Burnout: आज के समय में हम अपने बच्चे को हर एक फील्ड में परफेक्ट बनाना चाह रहे हैं और इस परफेक्ट पैरेंटिंग का दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. सभी चाहते हैं उनका बच्चा स्मार्ट बने और उसमें कई तरह के स्किल हो. वह पढ़ाई के साथ – साथ ड्रोइंग, पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, स्पोर्ट्स आदि में भी अव्वल रहे. बच्चों को ऑल राउंडर बनाने के चक्कर माता-पिता पैरेंटल बर्नआउट का शिकार हो रहे हैं जिसका असर न सिर्फ पैरेंट पर बल्कि बच्चों पर भी पड़ रहा है. जैसे जल्दी गुस्सा आना, बात-बात पर चिड़चिड़ाना, अपनी बात मनवाने के लिए जिद करना और किसी भी काम में अच्छा ना कर पाने या असफल होने पर निराशा से भर जाना आदि लक्षण देखने को मिल रहे हैं.

क्या है पैरेंटल बर्नआउट

पैरेंटल बर्नआउट एक तरह की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक थकावट है जो कि आजकल की भाग-दौड़ वाली लाइफ स्टाइल और बच्चों की लगातार देख-भाल के चलते उत्पन्न तनाव और थकान की वजह से होती है.

क्या है मनोचिकित्सक की राय

मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा न्यूजमॉरो डॉट इन से बात करते हुए बताते हैं कि बच्चों की खुशी को सामने रखकर उनपर बिना किसी दबाव डाले उनकी परवरिश करनी चाहिए. मार्क्स से अपने बच्चों की गुणवत्ता को कभी नहीं तौलना चाहिए. कभी भा अपनी इच्छा को अपने बच्चों के ऊपर मत थोपिए. अपने बच्चों में व्यवहारिक बदलाव आए तो तुरंत मनोचिकित्सक से संपर्क कर सलाह लेनी चाहिए. हमेशा पैरेंट से ज्यादा दोस्त बनकर रहने की कोशिश कीजिए. रूलिंग और पैरेंटिंग को साथ मिलाकर चलें.

एक स्टडी से पता चलता है कि अधिकतर माता पिता अपने दूसरे बच्चे के साथ बर्नआउट के शिकार हो जाते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि जो फाइनेंसियली साउंड होते हैं वे भी बर्नआउट के शिकार हो रहे हैं.

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, मनोचिकित्सक, रिनपास, रांची

पैरेंटल बर्नआउट के लक्षण

  • शारीरिक या भावनात्मक थकावट का अनुबव करना
  • अपनी पैरेंटिंग को लेकर शर्मिंदगी महसूस करना या सोचना कि हम उतने अच्छे माता-पिता नहीं है या दूसरे हमसे बेहतर अभिभावक हं.
  • माता – पिता होने की भूमिका से परेशान होना
  • अपने बच्चों से भावनात्मक रीप से अलग महसूस करना
  • बच्चों से रिश्ते की बॉन्डिंग या मजबूती में कमी आना
  • पैसे की समस्या

पैरेंटल बर्नआउट के कारण

तारीफ न मिलना

सराहना थक के चूर हुए इंसान के चेहरे पर भी मुस्कान ले आती है. दिल को सच्ची तारीफ मिलने पर, एक सुकून-सा महसूस होता है. घर की जिम्मेदारी और बच्चों की परवरिश को अच्छी तरह संभालने के बाद भी जब तारीफ न मिले, तो महिला का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और बर्नआउट को रूप में सामने आता है. कई लोग बर्नआउट को तनाव समझ लेते हैं, लेकिन बर्नआउट एक लंबे समय तक चलने वाली स्थिति है. तनाव अधिक सक्रियता का कारण बनता है, जबकि बर्नआउट लाचारी और निराशा की उपज है.

सपोर्ट न मिलना

कामकाजी महिलाओं के लिए पैरेंटिंग और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है क्योंकि उन्हें घर के काम को साथ घर में के बड़े बुजुर्गों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है और सहयोग के अभाव में कई बार यह सब उन्हें अकेले करना पड़ता है. ऐसे में वे बर्नआउट के शिकार हो सकती हैं जिसका असर पैरेंटिंग पर भी पड़ता है.

काम का बोझ

हर माता-पिता को एक समय पर कई जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं. ऐसे में वह बिना आराम किए लगातार काम करते हैं. यह बर्नआउट का कारण बन सकता है.

अपने इच्छा को दूसरों पर थोपना

ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर हम अपना इच्छा दूसरों पर थोपते हैं तो इससे सिर्फ हम ही नहीं बल्कि दूसरों को भी परेशानी में डाल देते हैं इसके साथ ही कई प्रकार के मानसिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है.

पैरेंटल बर्नआउट से निपटने के तरीके

  • खुद के लिए समय निकाले

बच्चों की परवरिश में खुद को न भुला दें. थोड़ा समय अपने लिए जरूर निकाले. अपनी सेहत को प्राथमिकता दें.

  • मदद मांगने से न हिचकिचाएं

यदि आप काम करने वाले हैं, तो घर की जिम्मेदारियों के बीच आपकी मदद मिल जाए तो काम आसान हो जाता है. सुपरमॉम बनने की कोशिश न करें. मदद मांगने से कभी मत हिचकिचाएं.

  • जिम्मेदारियों को बांटें

परवरिश की जिम्मेदारी अकेले मां की नहीं होती है. इस बात को घर के लोगों और आपके पार्टनर को समझने की जरूरत है. हां ये बात सही है कि मां की जिम्मेदारी थोड़ी ज्यादा होती है लेकिन आप पैरेंटल बर्नआउट का शिकार नहीं होना चाहती तो जिम्मेदारियों को बांट ले.

  • लोगों से मिलें-जुलें

खुश रहने के लिए अपने जीवन को बच्चे तक सीमित न कर लें. उन लोगों से मिलें-जुलें जिनसे मिलकर आपको खुशी मिलती है.