एक देश एक चुनाव, कितना जरूरी

One Nation One Election: हाल ही में जारी लोकसभा चुनावों के साथ एक देश एक चुनाव को लेकर भी चर्चा जोरों पर है. आज़ादी के बाद कई बार सभी चुनाव एक साथ हुए, लेकिन उसके लगभग दो दशक बाद जिस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का क्रम बिगड़ा. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी कमेटी ने अब अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है.

पिछले साल 2 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अगुवाई में बने पैनल ने राष्ट्रपति को 18 हजार 626 पन्नों की जो रिपोर्ट सौंपी. ऐसे में देश में एक देश एक चुनाव चर्चा के केंद्र में है. एक देश एक चुनाव का सीधा मतलब है कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होना चाहिए. यह देश के लिए कोई नई बात नहीं है. 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है. जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे.

कुछ विद्वान कहते हैं कि आज जिस हिसाब से देश की जनसंख्या है एक साथ चुनाव नहीं संभव नहीं लगता है. लेकिन पते की बात यह है कि समय के साथ साथ देश का तकनीकी और संसाधन की दृष्टि से भी विकास हुआ है.

एक देश एक चुनाव के पक्ष में तर्क यह है कि चुनाव कराना एक महंगा काम है. 2019 का लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव था. एक देश एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपने के बाद यह इस दिशा में सकारात्मक माहौल बना है. बार-बार चुनाव से राजनीतिक दलों का भी बहुत ज़्यादा खर्च होता है.

चुनावों के कारण देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है. इसकी वजह से सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने में समस्या आती है. इसके कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं.

जबकि एक प्रयास के विरोध में तर्क देने वालों का कहना है. एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है. आपातकाल जैसी परिस्थितियों के लिए एक देश एक चुनाव के नितांत विपरीत है. भारत का संघीय ढांचा संसदीय शासन प्रणाली से प्रेरित है और संसदीय शासन प्रणाली में चुनाव तो होते ही रहते हैं.

एक देश एक चुनाव के लागू होने से चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे के गौण होने की भी संभावना है. देश में चुनाव होते रहने से दल और जनप्रतिनिधि को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह रहना पड़ता है.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि एक देश एक चुनाव एक विचारयोग्य कदम है. इस पर तमाम विचार और विमर्श के बाद ही तमाम हितों का ध्यान रखते हुए इस पर कदम आगे बढ़ाना चाहिए.

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