पूर्व IPS अधिकारी राजेश प्रताप सिंह को मिला प्रथम राजभाषा पुरस्कार

आजमगढ़ जनपद के मूल निवासी और सीआरपीएफ के पूर्व स्पेशल डीजी सेवानिवृत्ति आईपीएस अधिकारी राजेश प्रताप सिंह को हिंदी दिवस के अवसर पर उनकी पुस्तक नक्सलवाद आकाश- कुसुम या यथार्थ? के लिए राजभाषा गौरव पुरस्कार प्रथम मिला है.

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हिंदी दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में राजभाषा हीरक जयंती समारोह और चतुर्थ अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में राजेश प्रताप सिंह को यह पुरस्कार दिया है. यह पुरस्कार पुलिस अनुसंधान, अपराध शास्त्र और पुलिस प्रशासन, न्यायालयी विज्ञान में मौलिक पुस्तक लेखन हेतु राजभाषा गौरव पुरस्कार योजना-2023 श्रेणी 2 में प्रदान किया गया है.

राजेश प्रताप सिंह वर्तमान में भारतीय शिक्षा बोर्ड के सचिव है. उन्होंने सेवानिवृत होने के बाद निरंतर अध्ययन और लेखन जारी रखा है. श्री सिंह उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के अतरौलिया समीप बसहिया गाँव के रहने वाले है।उनके पिता स्व श्री महेंद्र प्रताप सिंह थे और माता श्रीमती शांति देवी हैं.

उन्होंने स्नातक और दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की. शिक्षा पूरी होने के बाद उनका चयन 1983 में उत्तर प्रदेश पीसीएस और उसके बाद 1985 में भारतीय पुलिस सेवा में हो गया. वह उत्तर प्रदेश पुलिस और सीआरपीएफ में विभिन्न क्षमताओं में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं.

वे एक सफल पुलिस अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं।पुलिस सेवा में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्हें 1995 में वीरता के लिए ‘ पुलिस पदक’ और 2003 में सराहनीय सेवाओं के लिए ‘पुलिस पदक’ से अलंकृत किया गया.

उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए उन्हें 2009 में राष्ट्रपति का ‘पुलिस पदक’ भी मिला। अपनी पुलिस सेवा के दौरान उन्होंने प्रबंधन में डिप्लोमा और एलएलबी किया. उन्होंने मानवाधिकारों और अन्य सामाजिक मुददों पर कई लेख लिखे हैं. उनकी पुस्तक ‘न्यू टेक्नोलॉजी एंड पुलिस’को 2017 में गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार के लिए चुना गया था.

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